Nov 28 2024, 17:37
करहल और सीसामऊ में भाजपा की किलेबंदी रही फेल, सीएम योगी के तेवर पर भारी पड़ा नसीम सोलंकी के आंसू, विरासत को बचाने में कामयाब रही सपा
लखनऊ । करहल विधानसभा सीट पर सपा प्रत्याशी तेजप्रताप यादव ने जीत दर्ज की। तेजप्रताप यादव को कुल 104304 वोट मिले। वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी अनुजेश सिंह को 89579 वोट मिले। सपा ने 14725 वोटों से जीत दर्ज की। भले ही भाजपा यहां हार गई, लेकिन इस बार उनकी रणनीति यहां काम आई। भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा और जीत का अंतर घटकर बहुत नीचे आ गया। 2022 में अखिलेश यादव 67 हजार के बड़े अंतर से जीते थे।
उन्होंने भाजपा से चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को पराजित किया था। तब सपा के खाते में 60.12 प्रतिशत वोट गया था, वहीं भाजपा को 32.74 प्रतिशत वोट ही मिला था।उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में करहल सीट सबसे अहम थी। अहम इसलिए क्योंकि ये न केवल सपा का गढ़ रही बल्कि यहां से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव विधायक थे। उनके इस्तीफे के बाद ही उप चुनाव हुआ। सपा ने मुलायम सिंह यादव के पौत्र तेजप्रताप यादव को प्रत्याशी बनाया था तो वहीं भाजपा ने मुलायम के दामाद अनुजेश सिंह को मैदान में उतारा था। बसपा से अवनीश कुमार शाक्य ताल ठोंक रहे थे।20 नवंबर को हुए मतदान के बाद ही ये साफ हो गया था कि भाजपा प्रत्याशी अनुजेश सिंह यादव वोट में सेंध लगाने में कामयाब रहे।
23 नवंबर को जब परिणाम आए तो सपा ने जीत दर्ज की। तेजप्रताप यादव को 104304 वोट मिले, जबकि भाजपा प्रत्याशी अनुजेश सिंह को 89579 वोट मिले। ऐसे में सपा ने करहल की सीट 14725 वोटों से जीत ली। वहीं बसपा प्रत्याशी अवनीश कुमार शाक्य अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। उन्हें महज 8409 वोट ही मिल सके। करहल विधानसभा सीट से 2022 में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खुद विधानसभा चुनाव लड़ा था। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल को हराया था। अखिलेश यादव ने 148196 वोट हासिल कर 67504 वोटों की बड़ी जीत हासिल की थी। वहीं भाजपा को 80692 वोट मिले थे। कुल पड़े वोट में सपा को मिले वोट का प्रतिशत 60.12 प्रतिशत था, जो इस बार गिरकर 50.45 प्रतिशत पर आ गया। वहीं भाजपा को 2022 के चुनाव में 32.74 प्रतिशत वोट मिले थे जो इस बार बढ़कर 43.33 प्रतिशत रहा।
दूसरी तरफ कानपुर की सीसामऊ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को लगातार चौथी बार हार का सामना करना पड़ा। सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी ने 8629 वोटों से भाजपा के सुरेश अवस्थी को हराया। वहीं, बसपा प्रत्याशी बीरेंद्र कुमार शुक्ल 1409 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। सपा की भाजपा पर जीत को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भाजपा प्रत्याशी के तेवर पर सपा प्रत्याशी के आंसू भारी पड़े।मतगणना के दौरान कई बार ऐसा मौका आया जब सुरेश अवस्थी ने नसीम सोलंकी पर बढ़त बनाई, लेकिन जैसे-जैसे राउंड आगे बढ़े नसीम सोलंकी के मतों का अंतर बढ़ता चला गया। अंतिम नतीजे में सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी को 69,666 वोट मिले। बीजेपी प्रत्याशी सुरेश अवस्थी ने 61,037 वोट हासिल किए। सुबह बजे से नौबस्ता स्थित गल्लामंडी में मतगणना शुरू हो गई थी।
एक चबूतरे पर 14 मेजों पर गिनती की गई। पहले राउंड में ही नसीम ने 2351 मतों की बढ़त ले ली थी। तीसरे राउंड में 39 वोटों से भाजपा प्रत्याशी सुरेश आगे हुए। चौथे राउंड में 4378 वोटों से सपा ने बढ़त बना ली थी। नौवें राउंड में नसीम ने सबसे ज्यादा 30694 वोटों की बढ़त बनाई। इसके बाद 20 राउंड तक हुई गण्ना में सपा बढ़त बनाए रही। सीसामऊ उपचुनाव में पांच प्रत्याशी मैदान में थे। जिसमें बसपा प्रत्याशी बीरेंद्र कुमार को 1409 वोट मिले। अशोक पासवान को 266 और कृष्ण कुमार यादव को 113 मत मिले। वहीं 482 वोट नोटा पड़े हैं। कुल 132973 लोगों ने मतदान किया। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में हाजी इरफान सोलंकी ने सपा के टिकट पर यहां जीत दर्ज की थी। उन्होंने 79163 वोट पाकर भाजपा के सलिल बिश्नोई को हराया था।
सलिल बिश्नोई को 66,897 वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस के हाजी सुहेल अहमद को सिर्फ 5616 वोट मिले थे। साल 2012 में नए परिसीमन के तहत सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र बना था। इसके बाद से ही यह सीट सपा के पास है। इरफान सोलंकी का इस सीट पर खासा दबदबा है। साल 2017 में भी इस सीट पर हाजी इरफान सोलंकी ने जीत हासिल की थी। वह सपा के टिकट पर 73,030 वोट पाकर जीते थे। उन्होंने भाजपा के सुरेश अवस्थी को हराया था। सुरेश अवस्थी को 67,204 वोट मिले थे। बसपा के नंद लाल कोरी को 11,949 मिले थे। 2012 में सपा के टिकट पर हाजी इरफान सोलंकी ने सीसामऊ सीट से जीत मिली थी। सोलंकी को कुल 56,496 वोट मिले थे। भाजपा ने 2012 में हनुमान स्वरूप मिश्रा को टिकट दिया था। उन्हें 36,833 वोट मिले थे।
कांग्रेस के संजीव दरियाबादी को 22,024 वोट मिले थे। सबसे बड़ी वजह हिंदू वोटों का बंटवारा है, जिसे भाजपा बंटेंगे तो कटेंगे नारे के जरिए रोकने की कोशिश में लगी थी, जो पूरी तरह से काम नहीं आ सकी। इसके पीछे यह भी कहा जा रहा है कि टिकट की घोषणा से ऐन वक्त पहले भाजपा के दलित बिरादरी से आने वाले पूर्व विधायक राकेश सोनकर के अचानक चर्चा में आ जाने से भी दलितों के वोट बैंक पर असर पड़ने की बात कही जा रही है। चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा के खेमे में भी इस बात को लेकर काफी चर्चा रही, जबकि समाजवादी पार्टी मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करने के साथ ही हिंदू क्षेत्रों के हर बूथ पर भाजपा से बराबर की लड़ाई में रही।
इसी तरह, सीसामऊ क्षेत्र के 60 हजार दलित बस्तियों के मतदाताओं में से जिन 49.06 प्रतिशत यानि करीब 30 हजार मतदाताओं ने मतदान किया, उनका भी सीधे-सीधे दोनों पार्टियों में बंटवारा साफ-साफ दिखा। हालांकि भारतीय जनता पार्टी की ओर से दलित वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए रणनीति के तहत काम किया गया, जिसमें आंशिक सफलता ही मिल पाई। आमतौर पर बस्तियों के मतदाताओं को लेकर यह कहा जाता है कि उन्हें अपने पक्ष मे करने के लिए कुछ खास तरह के इंतजाम पार्टियों को करना होता है, वह पार्टी प्रत्याशी की ओर से किया जाता है, जो भाजपा की तरफ से उस तरीके से नहीं हो पाया, जैसा होना चाहिए। यह हार की दूसरी बड़ी वजह है। इसके अलावा मतदान के दौरान जगह-जगह से सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली ऐसी सूचनाएं जिसमें यह कहा जा रहा था कि पुलिस प्रशासन लोगों को वोट देने से रोक रहा है। इससे भी उपचुनाव की वजह से शांत पड़े ऐसे मतदाताओं को सक्रिय कर दिया। जिससे सपा प्रत्याशी को पलड़ा भारी रहा।
सपा प्रत्याशी के महिला होने और उनका सरल स्वभाव लोगों को उनके पक्ष में आने के लिए भी रोक नहीं पाया। दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी की तेवर वाली छवि को लेकर भी पार्टी के अंदर ही नकारात्मकता दिखी, यह भी हार की एक वजह बना। भाजपा के हार की एक वजह यह भी कही जा रही है कि जब राजकीय इंटर कॉलेज मतदान केंद्र में वोटिंग हो रही थी इसी तरह वहां पर भाजपा के पक्ष के कुछ नेताओं ने आकर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया और पुलिस से भी भिड़ गए। इससे भी पार्टी को नुकसान हुआ। भाजपा ने जिस तरह घर-घर से मतदाताओं को निकालकर बूथ तक लाने की योजना बनाई थी, वह पूरी तरह से कारगर नहीं हो पाई। इसकी वजह यह रही कि कार्यकर्ता मतदाताओं को घर निकालने में कामयाब नहीं हो सके।
विधानसभा क्षेत्र के ऐसे भी मोहल्ले और गलियां रहीं जहां प्रचार तो खूब हुआ लेकिन लोग कम निकले। इसके उलट समाजवादी पार्टी ने अपनी रणनीति में पूरी तरह से कामयाब रही। उसने मुस्लिम क्षेत्र के साथ ही हिंदू क्षेत्रों में बराबर की रणनीति बनाई थी। इसके साथ सपा प्रत्याशी की भावनात्मक छवि ने रही सही कमी को पूरा कर दिया। इसकी वजह से उन्हें बस्तियों के अलावा सिख, सिंधी, पंजाबी, पिछड़ा, वैश्य सभी समाजों से कम, ज्यादा वोट हासिल हुआ, जो उनकी जीत की वजह बना।
Nov 29 2024, 20:46